Menu
blogid : 23081 postid : 1104589

देह व्यापार पर रोक लगे

आहत हृदय
आहत हृदय
  • 59 Posts
  • 43 Comments

‘दास व्यापार’ प्राचीन विश्व की एक पतित प्रथा थी।बेबस एवं निर्दोष मानवीय शक्ति को औने-पौने दामों पर बेचकर धनार्जन तथा शक्तिशाली राष्ट्र बनने की तत्परता मानवता को भी शर्मसार कर देती थी।उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के उस युग में सामाजिक और आर्थिक रूप से गुलाम मनुष्यों के जीवन का कोई मोल नहीं था।एक मनुष्य,दूसरे मनुष्य को जानवरों की तरह पीटता था,गालियां देता था।ऐसा पतित व्यवहार किया जाता था जैसा आज के समाज में हम जानवरों से भी करना मुनासिब नहीं समझते हैं।गिरमिट एक्ट के तहत ऐसे लोगों का निर्बाध आपूर्ति भारत से अनेक देशों जैसे वेस्टइंडीज,माॅरीशस, ब्राजील में की जाती थी,जहां उनका खून चूस लिया जाता था।काम की अधिकता और आवश्यक पोषण के अभाव में शरीर हाड-मांस का पुतला बन कर रह जाता था।लेकिन,बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जैसे-जैसे उपनिवेशवाद की धूंध हटने लगी;स्वतंत्रता प्राप्त विभिन्न राष्ट्रों ने इस घृणित प्रथा का कानूनी उन्मूलन करना ही बेहतर समझा क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार पर ग्रहण के समान था।बेशक,आज हम लोकतंत्रात्मक राज्य के अंग हैं लेकिन आज भी देश के बिहार,झारखंड,छत्तीसगढ जैसे राज्य,जो आर्थिक,सामाजिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़े हैं,में यह व्यवस्था आज भी दूसरे रुप में विद्यमान है.चूंकि,पेट की आग दावानल और बडवाग्नि से भी भयंकर होती है,इसलिए यह भूख उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है और इसी बेबसी व लाचारी का फायदा वे दलाल उठाते हैं जो पैसों के लिए किसी भी हद तक जाकर मानवता के खिलाफ जाकर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।मीडिया में आई खबर की मानें तो बीते दिनों नेपाल में आए भूकंप रुपी जलजले से उत्पन्न तबाही के बाद बेघर तथा दो वक्त की रोटी को तरस रहे बच्चियों व महिलाओं की तस्करी की जा रही है।ऐसे समय में जिन्हें मदद की जरुरत है उन्हें हमारा समाज क्या दे रहा है?यह चिंता व चिंतन का विषय है।बात सिर्फ नेपाल की ही क्यों?अविकसित भारतीय गांवों के बेरोजगारों को नौकरी और रोजगार दिलाने का झांसा देकर न जाने कितनी ही निर्दोष बालाऐं जिस्मफरोशी की भट्ठी में झोंक दी जाती हैं।छोटी-छोटी बच्चियां नयी पौध के रुप में ही ऐसे पापों में धकेल दी जाती हैं।वे चीखती हैं;तड़पती भी हैं।लेकिन विडंबना यह है कि उसकी चीखें सुनने वाला कोई नहीं!मानव तस्करी का यह रुप आज अंदर ही अंदर विकराल रुप लेकर देश को खोखला करता जा रहा है।सरकार के दर्जन भर कानून किताबों में पन्नों की शोभा बढाती रह जाती है और दलाल,पुलिसों की शह से आज भी यह गोरखधंधा अंदर ही अंदर फैलता जा रहा है।दुर्भाग्य यह कि हमारे ही समाज के कुछ लोग(पापी)अपनी सामाजिक नैतिक जिम्मेदारियों से भागकर जिस्म के सौदागार बन गये;उन्हें रिश्तों के ताने-बाने से शायद कोई मतलब नहीं!’ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक‌,देह व्यापार से मुक्त कराई गई 60 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्होंने नौकरी की तलाश में घर छोड़ा था लेकिन उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल दिया गया।40 फीसदी ने बताया कि उन्हें शादी,प्यार और बेहतर जिंदगी का वादा करके या अपहरण करके इस धंधे में उतारा गया।सवाल यह भी उठता है कि आजादी के लगभग सात दशक बाद भी देश के विभिन्न राज्यों में रोजगार का अभाव क्यों है कि वो पलायन को मजबूर हैं?यह सवाल इसलिए कि प्रतिवर्ष देश में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के नाम पर करोडों की फंडिंग होती है।आखिर जनता के पैसों से बनी कल्याणकारी योजनाएं जनता का कल्याण क्यों नहीं कर पाती हैं?देह व्यापार ने देश में अपना पैर काफी हद तक फैला चुका है।स्थिति ऐसी कि आज देश के अधिकांश क्षेत्रों की पहचान रेड लाइट एरिया के रूप में हो चुकी है।कोलकाता,मुम्बई,नई दिल्ली जैसे महानगर और अन्य छोटे-बडे शहर इस मामले में कुख्यात हैं।इन अड्डों पर देहव्यापार के बडे-बडे कारोबार संपन्न होते हैं।नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके इन क्षेत्रों में स्थित कोठों पर लाया जाता है।सामाजिक संस्‍था ‘दासरा’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक,भारत में एक करोड़ 60 लाख को महिलाएं देह व्यापार का शिकार हैं।हमारी सुस्त पुलिस तंत्र कभी-कभी इन कोठों पर छापा मारकर असामाजिक तत्वों पर लगाम लगाने की कोशिश करता है,जिसकी खबरें मीडिया के सामने पेश होती रही हैं।लेकिन इसका दायरा बढाने की जरुरत है ताकि इसका समूल अंत हो।ऐसी घृणित प्रथा देश के लिए कलंक के समान है।इसका न सिर्फ कानूनी उन्मूलन हो बल्कि नैतिक अंत भी होना चाहिए।सभ्य समाज की स्थापना की ओर बढे देश में एक-एक लोगों को आवश्यक सुख-सुविधाऐं प्राप्त कर अपना संपूर्ण विकास करने का अधिकार है।फिर इसमें बाधा डालने वाले हम और आप कौन होते हैं?

सुधीर कुमार

छात्र:-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
आवास-राजाभीठा, गोड्डा, झारखंड

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh