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▪दूर्गा पूजा हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है.प.बंगाल से लेकर गुजरात तथा कश्मीर के कुछ भागों से लेकर तमिलनाडु तक यह पर्व बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.बुराइयों पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व दस्तक देने को तैयार है.इसी बाबत विभिन्न पूजा समितियों ने भव्य आयोजन के लिए कमर भी कस ली है.पंडाल निर्माण से लेकर मूर्ति विसर्जन की रुपरेखा अब लगभग तय हो चुकी है.विभिन्न चौक-चौराहों पर जबरन चंदा वसूली की परंपरागत प्रथा(कु) भी शुरु हो चुकी है.वर्ष-दर-वर्ष पूजा के नाम पर होने वाले खर्चे का ग्राफ लगातार बढता जा रहा है.समय बीतने के साथ-साथ भक्ति व श्रद्धा की बजाय पर्व-त्योहारों को हम परंपरा के नाम पर भव्यता व फूहडता का चादर ओढा रहे हैं.महंगे साज-सज्जा के वस्तुओं को बडी मात्रा में खरीदकर दूसरे दिन उसे विसर्जित कर देने से बेवजह धन-संपदा की हानि होती है.पूजा के लिए भव्यता नहीं भक्ति और श्रद्धा की जरुरत होती है.आयोजनों में प्रयुक्त मूर्तियां व त्याज्य वस्तुओं का जलस्रोतों में अशोधित प्रवाह जल स्रोतों को प्रदूषित करती है.कोशिश करें कि इस बार ‘प्लास्टर ऑफ पेरिस’ से बनने वाली पर्यावरण-प्रतिकूल मूर्तियों के स्थान पर लुगदी से बनने वाली मूर्तियां ही पंडालों में स्थापित हो.अभद्र गीतों से मनोरंजन की बजाय भाईचारे और सौहार्द्र से पूजा हो.बैरिकेडिंग कर नागरिकों से चंदा के नाम पर मनचाहे पैसे को न लेकर कम खर्च में ही पूजा की व्यवस्था की जाये.बीते दिनों गणेश चतुर्थी के अवसर पर वाराणसी में गंगा में मूर्ति विसर्जन को लेकर प्रशासन और नागरिकों में ठन गई थी.हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद लोग सदियों पुरानी परंपरा का वास्ता देकर गंगा नदी में ही विसर्जन को लेकर काफी बवाल काटा था.देश में नदियों का अस्तित्व खतरे में है.गाद-मलबों की अधिकता से उसकी प्राकृतिक गति मंद पड गई है.कृप्या उसे और अधिक बोझ न दें.इस बार पूजा में बेवजह के तामझाम को तिलांजलि दें.मन से की गई पूजा अधिक प्रभावी होती है,अपेक्षाकृत महंगी व दिखावटी पूजा से,इसलिए पूजा के नाम पर बेवजह धन की बर्बादी देशहित में नहीं है.आइए इस बार शपथ लें कि रावण के पुतले के दहन के साथ-साथ विभिन्न व्यक्तिगत व सामाजिक बुराइयों को भी आग लगायी जायेगी.तब जाकर सच में हमारी पूजा पूरी होगी.
लेखक:-
▪सुधीर कुमार▪
छात्र:-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
आवास-राजाभीठा, गोड्डा
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