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मोबाइल क्रांति,हमारा समाज व पर्यावरण

आहत हृदय
आहत हृदय
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बढती आबादी,बढती संपन्नता व समय के साथ कदमताल करने की होड में विश्व में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में तेजी से बढोतरी हुई है।मौजूदा हालात यह है कि मोबाइल फोन की संख्या विश्व की जनसंख्या का आंकडा पार कर चुकी है।इस वर्ष विश्व में मोबाइल फोन की संख्या पूरे 7.5 अरब हो गई है जबकि विश्व आबादी सिर्फ 7.2 अरब ही है।यह स्थिति तब है जब मौटे तौर पर दुनिया की एक तिहाई आबादी मोबाइल फोन से वंचित है।इससे स्पष्ट होता है कि अपनी सामर्थ्य के अनुसार बडी संख्या में लोग दो या उससे अधिक फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।1973 में जब मार्टिन कूपर ने दुनिया के सामने करीब एक किलो के वजन पहला मोबाइल फोन प्रस्तुत किया था तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि 40 साल बाद विज्ञान का यह चमत्कारिक ईजाद दुनिया को सम्मोहित कर लेगा।मोबाइल फोन धारकों की संख्या के मामले में हम भी कुछ पीछे नहीं हैं।हमारा देश भारत इस मामले में लगातार आंकडों का नया इतिहास रचते हुए एक बडे वैश्विक बाजार के रुप में परिणत हो चुका है।फिनलैंड,कोरिया व कनाडा जैसे देशों की मोबाइल निर्माता कंपनियों ने भारत को एक बडा बाजार बना दिया है और इस तरह वे बडी मात्रा में संपत्ति अर्जन भी कर रहे हैं।गरीबी व पिछडेपन के बावजूद देश में मोबाइल फोन धारकों की संख्या में द्रुत गति से वृद्धि हुई है।एक अनुमान के मुताबिक देश में करोब 98 करोड मोबाइल फोन धारक हैं।इतना ही नहीं,इस सूची में 50 से 60 लाख प्रतिवर्ष जुड रहे हैं।
कुछ वर्ष पूर्व देश में भोजन,वस्त्र और आवास लोगों की बुनियादी आवश्यकताएं थीं।इसकी उपलब्धता ही लोगों में संतुष्टि का पैमाना थी।लेकिन धीरे-धीरे नागरिकों की इस सूची में स्वास्थ्य,शिक्षा के साथ-साथ मोबाइल फोन और इंटरनेट की आवश्यकता ने अपनी गहरी पैठ बनानी शुरु कर दी है।अब तो यह डिजिटल क्रांति का एक हिस्सा बन चुका है।प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी खुद कहते हैं कि वे शासन को अंतिम व्यक्ति के हाथ में देना चाहते हैं।उनका इशारा नागरिकों द्वारा मोबाइल के प्रयोग के की तरफ है।इसी बाबत आज लोग तकनीक से जुडे रहने के लिए मोबाइल फोन से नजदीकियां बढा रहे हैं।आलम यह है कि आज ग्रामीण क्षेत्रों के लोग घर में शौचालय न होने से ज्यादा विचलित नहीं होते हैं लेकिन वे घर में मोबाइल फोन उपलब्ध हो,इस बात पर अधिक जोर देते हैं।आज मोबाइल फोन में तो सारा संसार ही समाया हुआ है।एक क्लिक पर शिक्षा,अर्थ,सिनेमा,फैशन,खेल,रोजगार आदि तमाम क्षेत्रों से तत्काल अपडेट रहा जा सकता है।और जब ऊंगलियां स्मार्टफोन पर हो तो जनाब बात ही क्या है!
वैश्वीकरण के चलते आज हर रोज बाजार में आकर्षक मोबाइल फोन आ रहे हैं।बढती प्रतिस्पर्धा के कारण मोबाइल कंपनियों में नई और दूसरी कंपनियों से अपेक्षाकृत अच्छी,अधिक और सस्ती सुविधाएं उपलब्ध कराने की होड है।बाजार में मोबाइल फोन का इस तरह आगमन उपभोक्ताओं को अपना चंद दिनों पुराना हैंडसेट बदलने को अप्रत्यक्ष रुप से प्रेरित भी करता है।एक दशक पूर्व जिस मोबाइल फोन को खरीदना देश के एक बडे वर्ग के लोगों के लिए एक सपना था,आज वैसे फोन घरों में कचरा बन गए हैं।सीमित सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले इन फोनों को साथ लेकर चलने में लोग अपनी बेइज्जती समझने लगे हैं।इस तरह मोबाइल फोन को जहां-तहां फेंकने से ई-कचरे की समस्या उत्पन्न हो गयी है।पर्यावरण प्रदूषण के एक कारक के रुप में इसका प्रभाव बढता जा रहा है।भूमि पर इसके दब जाने से ना सिर्फ मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षय होता है बल्कि पर्यावरण में कार्बन की मात्रा भी बढती जा रही है।वैश्विक पटल पर देखें तो यह समस्या और अधिक गंभीर प्रतीत होती है।एक शोध में पाया गया कि मोबाइल टावर से निकलने वाली हानिकारक तरंगें ना सिर्फ पक्षियों की मौत का कारण है,बल्कि मनुष्यों के कैंसर का एक बडा कारण भी है।इतना ही नहीं,इसका बुरा असर हमारे समाज पर भी पड रहा है।समाज सामाजिक संबंधों का जाल है।लेकिन मोबाइल फोन के प्रति लोगों के अनावश्यक प्रेम व समर्पण से ये संबंध कमजोर होते जा रहे हैं।छोटे बच्चे,जो कुछ वर्ष पूर्व दादी-नानी की गोद में बैठ पंचतंत्र व जातक कथाएं सुना करते थे आज वे वीडियो गेम्स खेलने और दोस्तों के साथ चैटिंग करने में अपनी रुचि अधिक दिखा रहे हैं।यही नहीं,उम्र में बडे लोग भी मोबाइल फोन को संसार समझ अपनी नजरें गडाए रहते हैं।आज लोगों के पास अपनों के लिए समय नहीं है जबकि फेसबुक और व्हाट्सअप पर अनजान लोगों से संपर्क बढा चैटिंग करना उनकी दिनचर्या बन चुकी है।मोबाइल फोन में गोते लगाने से लोगों में संवेदनशीलता का स्तर इस कदर कम हुआ कि सडक पर तडपते व नदी में डूबते व्यक्ति की त्वरित सहायता देने की बजाय मूकदर्शक बने लोग उसे अपने कैमरों में कैद कर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर पोस्ट करना अपना परम धर्म समझने लगे हैं।अधिक समय तक फोन पर चिपके रहने के कारण लोगों में तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं घर कर रही हैं।लगातार फोन पर बात करने से कान और तंत्रिका तंत्र को चोट पहुंचती ही है।साथ ही,याददाश्त का कम होना और नींद ना आना मोबाइल प्रयोगकर्ताओं के बीच एक बडी समस्या बन चुकी है।बढते मोबाइल उपभोक्ताओं को देख अब दूरसंचार कंपनियां भी मनमानी करने लगी हैं।अभी हाल ही में चर्चा का विषय बना कि ये कंपनियां काॅल ड्राप की साजिश रचकर करोडों रुपये गटक रही है।उपभोक्ताओं को मालूम भी नहीं पडता था और पैसे कट जाते थे।सिम पर कई सेवाएं स्वतः शुरु कर पैसे लूटना तो बस इन कंपनियों की आदत-सी बन गई है।इस बीच उपभोक्ताओं को मिलने वाली एमएनपी(मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) की सुविधा ने बोझ हल्का जरुर कर दिया है।अब वे अपनी मर्जी से नंबर बिना बदले अपनी सिम की कंपनी बदल सकते हैं।बहरहाल,मोबाइल फोन आज इंसान का जरुरत बन गया है।कम से कम इस तकनीकी युग में प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए तो मोबाइल का उपयोग आना ही चाहिए।इसके प्रयोग के फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं।लेकिन अगर हम संभलकर और आवश्यकतानुसार ही मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं तो यह बुरा भी नहीं कहा जा सकता।

सुधीर कुमार,
छात्र-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी
घर-राजाभीठा,गोड्डा,झारखंड
प्रतिक्रिया-sudhir2jnv@gmail.com)

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