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जिंदगी को तबाह करता एड्स

आहत हृदय
आहत हृदय
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‘परदेश जाके परदेशिया,ना लाना एड्स अपनी दुअरिया’….ऑटो के पीछे लगे पोस्टर में लिखित इस श्लोगन का मर्म समझना जरुरी है।भारत एक विकासशील देश है।विकास के मामले में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता की वजह से रोजगार न उपलब्ध हो पाने की स्थिति में बड़ी संख्या में कामगार काम की खोज में अपेक्षाकृत विकसित शहरों या नगरों की ओर प्रस्थान करते हैं.आशा तो यही रहती है कि अधिकाधिक श्रम कर धनार्जन किया जाय ताकि नियमित समयंतराल पर परिजनों को आवश्यक धनराशि भेजी जा सके।लेकिन होता क्या है कि यौन इच्छा की प्रगाढ़ता और परिवार से वियोग के कारण नौजवानों का अपने लक्ष्य से मोहभंग हो जाता है और अपने शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु अवैध यौन संबंध को अपना कर बडी गलती कर देते हैं.इसलिए उपर्युक्त श्लोगन के सहारे कुछ ऐसे ही अंदाज में आज भी भारतीय समाज की महिलाऐं सुदूर प्रदेशों में जाकर मजदूरी करने वाले अपने पतियों को संदेश देती रहती हैं।हालांकि,एड्स फैलने के कई कारण हैं लेकिन असुरक्षित यौन संबंध एक बड़ा कारण साबित हुआ है।बेशक,एड्स एक जानलेवा बीमारी है लेकिन जान लेने से पूर्व यह भुक्तभोगी को सामाजिक और आर्थिक रुप से कमजोर भी करता है।एक तरफ व्यक्ति समाज के लोगों द्वारा होने वाले भेदभाव तथा छुआछूत के भय से उचित समय पर अपनी बीमारी को प्रकट कर उपयुक्त ईलाज से वंचित हो जाता है तो दूसरी तरफ नौकरीपेशा की चाह में शहरों की ओर प्रस्थान किया व्यक्ति बीमारी की वजह से उत्पन्न डर और कमजोरी से अपनी कार्यकुशलता खो बैठता है।अवैध यौन संबंध की एक नादानी और जागरूकता तथा आवश्यक पैसे के अभाव में इलाज की ओर बेरुखी से बडी संख्या में कामकाजी लोगों में श्रमशक्ति का अभाव हो रहा है,जिससे उत्पादन प्रक्रिया में शामिल लोग अपनी क्षमतानुसार योगदान नहीं दे पाते हैं और अंततोगत्वा नुकसान राष्ट्र का होता है.एड्स पीडितों में ज्यादातर हिस्सा गांवों से शहरों की ओर पलायन करने वाले दिहाडी मजदूरों तथा झुग्गी बस्तियों में निवास करने वाले लोगों का है.वहीं,दूसरी तरफ आज भारत के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की मौजूदा स्थिति किसी से छिपी नहीं है.आज भी बहुत सारे लोगों को एड्स के बारे में सही जानकारी नहीं है.जिसे जानकारी है भी तो वे बताने से कतराते हैं कि कहीं इसकी भनक लोगों को लग जाय तो समाज उन्हें कलंकित ना समझे.एड्स की व्यापकता की जड़ में कहीं न कहीं समाज का सौतेला व्यवहार भी जिम्मेवार है जिसके कारण आज एड्स पीड़ित व्यक्ति बिना बीमारी बताएं अपने साथ दूसरों की जिंदगी दांव पर लगा देता है.ऐसे नहीं है कि तेजी से फैलते इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।देश की कई सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाऐं अपनी ओर से सार्थक पहल कर रही हैं.अब जरुरत है कि लोग जागरुक हों.इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है.हमारा आज का समाज इतना भी रुढ नहीं है कि पीडितों के अपनी बीमारी जाहिर करने पर उनसे भेदभाव या छुआछूत किया जाएगा,यह पीडितों के मन में बैठा वहम भी हो सकता है.यदि पीडित को ससमय घरवालों का सहयोग मिलता है तो आवश्यक उपचार की संभावना बढ जाती है.जिलास्तरीय अस्पतालों में भी कुछ सहायता पीडितों को मिल रही हैं.इसलिए बीमारी को छुपाना नहीं तत्काल जाहिर करना जरुरी है ताकि समय रहते उसका उचित उपचार किया जा सके।मानना पडेगा कि आज जिला सदर अस्पतालों में आवश्यक दवाओं और जांचयंत्रों की कमी है.इसके कारण निम्न आय वर्ग के लोग ज्यादा खर्च होने के डर से निजी अस्पतालों में जाने से कतराते हैं.एड्स से बचने का एकमात्र उपाय जागरुकता है.एड्स फैलने के अन्य कारणों को ध्यान में रखते हुए जीवन की गाडी को सही दिशा दिया जाए तो हालात बदलते देर न लगेगी.एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव यह भी है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है.कोई व्यक्ति एड्स पीड़ित है तो उसे हम पापी क्योँ समझें!उसे अपनत्व का प्यार मिले तो दवा से ज्यादा असर हमारे स्वस्थ माहौल का होगा.आइए एक सार्थक पहल करें तो शायद स्थिति बदले.

सुधीर कुमार
sudhir2jnv@yahoo.com

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