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ऊर्जा संरक्षण के वैयक्तिक प्रयास पर दें जोर
14 दिसंबर को देश में ‘राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस’ के रुप में मनाया जाता है.ऊर्जा संकट से जूझ रहे भारत में ऊर्जा की महत्ता तथा उसके संरक्षण के प्रति लोगों में चेतना के विकास की दृष्टि से यह दिवस महत्वपूर्ण है।बढती जनसंख्या के साथ ऊर्जा की बढती खपत और दुरुपयोग से ऊर्जा संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है।सरकार व नागरिकों का ऊर्जा संरक्षण के प्रति शिथिलता से निकट भविष्य में इससे उबरने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।ऊर्जा संसाधन देश की आर्थिक और सामाजिक विकास को आधार प्रदान करते हैं।बिजली निर्माण के लिए उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों का एक बडा हिस्सा खपत होता है लेकिन नागरिकों की असक्रियता से हर घर में बिजली की बर्बादी अब आम हो चुकी है।इसका नतीजा यह है कि आजादी के सात दशक बाद भी देश की एक बडी आबादी ढिबरी तथा लालटेन युग में ही जीने को विवश है।सरकार का सबको बिजली देने की बात इस हिस्से के लिए मात्र दिवास्वप्न है।चूंकि,बिजली हर परिवार की बुनियादी आवश्यकता होती है।ऐसे में इसके अभाव का असर वंचित परिवारों में शिक्षा,स्वास्थ्य व रोजगार की स्थिति पर भी पडता है।ऐसा नहीं है कि विद्युतीकृत इलाकों में रहने वाले लोग सुख-चैन से जीवन गुजार रहे हैं।वहां तो बिजली की नियमित आंखमिचौली ने उपभोक्ताओं को परेशान कर रखा है।ऊर्जा संकट की विकट स्थिति से निपटने के लिए नागरिकों के सामूहिक सहयोग की जरुरत है।हम बिजली बचाकर भी ऊर्जा के उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं।यदि हरेक नागरिक अपने घरों में अनावश्यक प्रयोग हो रहे बिजली के उपकरणों पर नियंत्रण रखता है,तो प्रतिदिन कई हजार मेगावाट बिजली बचाई जा सकती है।इस बिजली का प्रयोग उन इलाकों में रोशनी के लिए किया जा सकता है,जो विद्युतीकरण योजना से आज भी कोसों दूर हैं।साथ ही,इससे बिजली की आंखमिचौली पर भी लगाम लग सकेगी।दूसरी ओर,घरों में रोशनी के लिए सौर ऊर्जा संचालित सेल तथा एलईडी तथा सीएफएल बल्बों का प्रयोग कई मायने में बेहतर हो सकता है।बडी दूरी के सफर के लिए सार्वजनिक वाहनों तथा छोटी दूरी के लिए साइकिल का प्रयोग स्वास्थ्य,पर्यावरण,आर्थिक बोझ व ऊर्जा संरक्षण आदि कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है।ऐसे चंद प्रयासों से हम बेहतर कल के निर्माण की नींव बुलंद कर सकते हैं।जरुरत एक कदम उठाने भर की है।
सुधीर कुमार,बीएचयू,वाराणसी
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