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मध्याह्न भोजन योजना:कुछ पाया और पाना है अभी

आहत हृदय
आहत हृदय
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देश में नौनिहालों के पोषण,स्वास्थ्य व साक्षरता के स्तर को उन्नत करने के उद्देश्य से करीबन दो दशक वर्ष पूर्व,प्राथमिक विद्यालयों में शुरु की गई केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मध्याह्न भोजन’ की शुरुआत की गयी थी।यह योजना बहुत हद तक सफल साबित हुआ।भले ही इसके विरोधी इसकी सफलता के विरोध में चाहे जो भी तर्क देते हो,लेकिन सच्चाई यह है कि इसने शिक्षा जगत में कई क्रांतिकारी परिवर्तन की आधारशिला रखी.सामाजिक-आर्थिक समानता को समाज में पुनः स्थापित करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।इसी भारतीय समाज में एक ऐसा भी दौर था,जब भूखे-प्यासे बच्चे विद्यालयों की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखते थे।उनका सारा समय तो गली-मुहल्लों व सडकों पर आवारा तरीके से घूमने तथा खेलने में ही बीत जाता था।बच्चे तो खैर बच्चे होते हैं लेकिन बच्चों की शिक्षा के मामले में अभिभावक भी बेखबर रहते थे।इसका कारण पूछने पर प्रायः एक ही रटा रटाया जवाब मिलता था कि घर में खाने को नहीं है तो बच्चों को स्कूल कैसे भेजें?लेकिन इस योजना के प्राथमिक विद्यालयों में लागू होने से एक बडा परिवर्तन देखने को मिला है।अब थाली लेकर ही सही बच्चे विद्यालय तो पहुंच रहे हैं।सुखद बात यह कि ये बच्चे उक्त अभिशप्त परिस्थितियों से मुक्ति तो पा रहे हैं,जिसमें वह अपने बचपन को दांव पर लगा देता था।विद्यालय में उपस्थित रहने से कुछ शब्द तो उनके कान में पड ही जाते हैं।साथ ही,प्रतिदिन विद्यालय जाने के लिए बच्चा अभ्यस्त तो हो ही रहा है।धीरे-धीरे समझ बढेगी तो वह बच्चा पढाई में अच्छा प्रदर्शन भी करेगा।नियमित विद्यालय जाने से वह न सिर्फ भोजन ग्रहण कर रहा है,अपितु अनुशासन,खेल,सहयोग व सम्मान की भावना तथा नेतृत्व के गुण भी तो सीख रहा है।दूसरी तरफ हम देखें तो मध्याह्न भोजन योजना के कारण बच्चे सामाजिक तौर पर परिपक्व हो रहे हैं।छोटी उम्र से ही ये बच्चे धर्म,जाति,संप्रदाय व परिवार आदि में विभेद किये बिना साथ भोजन कर रहे हैं और खेल भी रहे हैं।इससे आने वाले समय में देश में सामाजिक-आर्थिक भेदभाव तथा असमानता की दीवारें निश्चित तौर पर टूटेंगी।तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि आज यह योजना भारी अनियमितता की गिरफ्त में है।एक तरफ,योजना की राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ रही है,तो दूसरी तरफ,प्रबंधन में लापरवाही बरते जाने के कारण बच्चों को दूषित भोजन परोसा जा रहा है।इस तरह,दोनों तरफ से बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड किया जा रहा है।एक तरफ उनका जीवन,तो दूसरी ओर इन बच्चों का भविष्य दांव पर है।वही,शिक्षकों ने अपने विद्यालयों में साक्षरता का स्तर न बढ पाने के पीछे का कारण मध्याह्न भोजन योजना में अपनी व्यस्तता को बताकर रही-सही कसर भी पूरी कर दी।इस योजना का लक्ष्य बहुआयामी है,लेकिन शिक्षकों व संबंधित अधिकारियों के साझे प्रयास से यह लूट की भेंट चढ कर रह गया है।यूं तो दिखावे के लिए,विद्यालयों के प्राचीर पर बच्चों को परोसे जाने वाले मीनू में पौष्टिक व्यंजनों की एक लंबी सूची चस्पा दी गई है,लेकिन वास्तव में इसका लाभ बच्चों को मिल नहीं रहा है।अगर,वास्तव में इस योजना के उचित क्रियान्वन के प्रति संबंधित लोग गंभीर होते,तो देश में कुपोषण के शिकार बच्चों में निश्चित रूप से कमी आ सकती थी।दुर्भाग्यवश,आज यह योजना दम तोडती नजर आ रही है.अब,चंद गिने-चुने बच्चे ही विद्यालयों में नजर आते हैं।इस तरह,बच्चों को पोषित कर सभी पीरियड की पढाई तक स्कूल में रखने का स्वप्न व्यवहार के धरातल पर उतर ना सका!जरुरत है मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता व व्यवस्था में सुधार की।इस योजना के संचालन की जिम्मेदारी भरोसेमंद लोगों को सौंपनी चाहिए।पिछले कुछ समय से बारंबार मध्याह्न भोजन में अनियमितता की शिकायतें प्रकाश में आई है।जरा सी चूक के कारण सैकडों मासूम बच्चे बीमार हो जाते हैं और जीवन पर ग्रहण लग जाता है।केंद्र सरकार इस योजना में पानी की तरह पैसे बहा रही है।नौनिहालों के नाम पर आए पैसों का गबन करना पाप है।बच्चों को उनके अधिकार व उनकी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए,तभी जाकर आज के बच्चे कल के भविष्य बन पाएंगे।निःसंदेह,इस योजना ने समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत की है,जिसका स्वप्न कभी गांधी,अंबेडकर व ज्योतिबा फूले देखा करते थे।इस योजना का उद्देश्य बहुआयामी है।निर्धन परिवार के बच्चों के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है।किसी भी हालत में यह योजना बंद नहीं होनी चाहिए।अन्यथा समाज में नौनिहालों का एक बडा हिस्सा भूखी,कुपोषित व निरक्षर रह जाएंगी।

लेखक:-
▪सुधीर कुमार,

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