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सपने देखना बुरा नहीं है।बुरा है,अपनी क्षमताओं व योग्यताओं से परे सपने देखना और उसे पूरा न कर पाने की कसक के चलते मौत को गले लगा लेना।हमारे समाज में बच्चों के जन्म के साथ ही उसके माता-पिता सपने देखना शुरू कर देते हैं कि वे बच्चों को भविष्य में किस रुप में देखना चाहते हैं।स्कूल के दिनों में कुछ समय पहले तक बच्चों को अपना लक्ष्य चुनने की स्वतंत्रता नहीं थीं।प्रायः मां बाप अपने बच्चों को इंजीनियर या डाॅक्टर ही बनाना चाहते थे।इस तरह बच्चे ना तो अपने मन की ख्वाहिश ही पूरी कर पाते थे और ना ही माता पिता के सपने।आज स्थिति थोडी बदली जरुर है।लेकिन आज भी कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली में खुले कोचिंग संस्थान खुलेआम सपने बेच रहे हैं।छात्रों को सुनहरे भविष्य के सपने दिखाकर तथा संबंधित अभिभावकों को आश्वस्त कर ये संस्थान जबरदस्त पैसे ऐंठ रहे हैं।एसएससी,रेलवे से लेकर प्रतिष्ठित आइएएस की परीक्षा की तैयारी महज दो महीने में तैयार कराने के लुभावने विज्ञापन छात्रों को भ्रमित कर रहे हैं।अंग्रेजी ज्ञान की बढती मांग के कारण तीस दिनों में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने का दावा करने वाले ये संस्थान अपनी ऊंगली सीधा करने का काम करते हैं।कोचिंग का गढ बने कोटा,दिल्ली,इलाहाबाद,रांची व पटना जैसे शहरों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे लाखों विद्यार्थी अपनी रुचि व योग्यता को दरकिनार कर कोचिंग संस्थानों के ‘भरोसेमंद झांसे’ में आकर अपने भविष्य से खिलवाड कर रहे हैं।अपनी रुचि को दरकिनार कर वे आईआईटी अथवा एआईपीएमटी के माध्यम से अपना भाग्य आजमा रहे हैं।नया शहर,नया माहौल व नये मित्रों का साथ,ऊपर से अभिभावकों के संरक्षण के अभाव के कारण ये छात्र लक्ष्य से भटक रहे हैं।जब तीर निशाने पर नहीं लगता है,तब निराशावश वे अपनी रुचि की ओर अग्रसर होते हैं।लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है।सरकारी अथवा निजी स्कूलों की पढाई पर छात्रों का भरोसा नहीं रहा और कोचिंग उनकी आवश्यकता बन गयी।प्रमुखतः विज्ञान और गणित विषयों पर केंद्रित परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए अपनी मेहनत से सफलता प्राप्ति के बगैर बच्चे कोचिंग संस्थानों की पूजा कर रहे हैं।क्षमता से बाहर के ख्वाब की पूर्ति की तैयारी चंद माह की तैयारी में संभव नहीं हो पाती।नतीजतन,परीक्षा में विफलता से वे टूट जाते हैं।लाखों की संपत्ति स्वाहा होते देखने पर वे खुद को ठगा महसूस करते हैं।अब क्या होगा?के यक्ष प्रश्न के उत्तर का जवाब न दिखता देख वे आत्महत्या करना ही बेहतर समझते हैं।और इस तरह छात्र,माता-पिता व परिजनों के सपने मिट्टी में मिल जाते हैं।लेकिन,कोचिंग संस्थानों का सपने दिखाकर मौत बेचने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है।
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