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उद्योग संगठन एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार,देश में मंजूरी प्राप्त 416 सेज(विशेष आर्थिक क्षेत्र) में महज 202 औद्योगिक इकाइयां ही काम कर रही हैं.विदेशी कंपनियों के अपकर्षण तथा देश में आर्थिक उदासीनता के कारण आधे से अधिक आर्थिक इकाइयां धुल फांक रही हैं.इसके बेकार पड़ने से बडी मात्रा में राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान भी हो रहा है.चंद माह पूर्व,कैग की आयी रिपोर्ट ने भी इसकी स्थापना को फायदेमंद नहीं माना था.कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सेज पर कर-छूट से देश को सलाना 13850 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.भारत को सेज की स्थापना की प्रेरणा चीन से मिली.लेकिन,भारत यह विचार नहीं कर पाया कि चीन में सेज स्थापना के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं,जैसे वहां गैर-कृषि कार्य योग्य भूमि की अधिकता है,तो दूसरी तरफ,वहां भूमि अधिग्रहण संबंधी कानून भी अपेक्षाकृत उदार हैं,जिसके दम पर उसने सेज को लाभ का बडा स्रोत बना सका.जबकि,हमारे यहां स्थितियां विपरीत हैं.कृषि-उन्मुख अर्थव्यवस्था होने के कारण यहां परित्यक्ता भूमि की मात्रा कम है.साथ ही,यहां भूमि अधिग्रहण कानून भी पेचिदा है,जिसपर आए दिन संसद में बहस होती रहती है.देश में उद्योगों की स्थापना के लिये लोगों को मुआवजा देकर कृषि योग्य भूमि तक को भी हड़पने की परंपरा रही है.वहीं,देश में कृषि योग्य उर्वर भूमि के उद्योगों की भेंट चढ़ने के कारण कृषि क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है,जिससे कृषि पर निर्भर लोग आजीविका के लिए भटक रहे हैं.सेज की स्थापना की बजाय कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाता,तो यह फायदे का सौदा हो सकता था.बहरहाल,हमारी सरकार सेज संबंधित दुश्वारियों को दूर करने के प्रयास करे,ताकि विदेशी कंपनियां आकर्षित हों.बेकार पड़े संयंत्र राष्ट्र हित में नहीं है.
▪सुधीर कुमार,
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