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4 फरवरी,2004 को,इंटरनेट की दुनिया में,मार्क जुकरबर्ग की कल्पनाओं का साकार रुप,’फेसबुक’ का आगमन,इस सदी का चमत्कारिक ईजाद माना जा सकता है.12 वर्ष की लघु समयावधि में,इसने कई क्रांतिकारी परिवर्तन किये.युवा मार्क जुकरबर्ग का यह चमत्कारिक ईजाद,आज नई दुनिया,नई सोच व नये समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है.सूचना प्रौद्योगिकी के इस नवीन युग में,फेसबुक ने कई क्रांतिकारी परिवर्तनों की आधारशिला रखी है.बीते दिनों,प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कैलिफाॅर्निया स्थित फेसबुक कार्यालय में एक मुलाकात के दौरान,संस्थापक-सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने देश में डिजिटलीकरण प्रक्रिया में साथ देने का भरोसा दिलाया.यह भी रोचक है कि उनके एक आह्वान पर डिजिटल क्रांति को अपना समर्थन जाहिर करने की खातिर,लाखों भारतीयों ने संदेश मिलते ही झट से अपनी प्रोफाईल फोटो तिरंगे के रंगों से सराबोर कर लिया.फेसबुक की उम्र महज बारह वर्ष है,लेकिन इस छोटे समयंतराल में वह लोगों की ताकत बन चुका है.भारत सहित दुनियाभर में आज इसके,करीब 2 अरब प्रयोगकर्ता हैं.बिछडे दोस्तों व सहकर्मियों को आपस में जोडने का श्रेय इसी को जाता है,तो नये लोगों के साथ संपर्क बढाने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.आज यह अपराधियों को पकडने और उनके छानबीन में मदद कर रहा है,तो दूसरी ओर,यह अफवाह और अंधविश्वास फैलाने का एक बडा जरिया बन गया है.फेसबुक के कुछ दुर्गुण हो सकते हैं,लेकिन अच्छाइयां उसपर भारी पडती दिखती है.कॅरियर निर्माण की दहलीज पर खडे युवाओं को इसकी लगी लत,सुनहरे भविष्य को दांव पर लगाने के समान है,तो सतर्कता से प्रयोग करने वाले युवाओं का यह भविष्य भी संवार रहा है.गलत आईडी व गलत जानकारियां प्रदान कर,हम दूसरों को भ्रमित न करें,बल्कि समाजोपयोगी प्रयोग कर,इसकी सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं.
▪सुधीर कुमार
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