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”अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” पर विशेष

आहत हृदय
आहत हृदय
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8 मार्च को पूरा विश्व,’अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के रुप में मनाता है।सर्वविदित है कि महिलाओं के उत्थान के बिना देश का विकास संभव नहीं है।इसके लिए जरुरी है कि सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक तथा अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े।एक दिन पूर्व ही महिला जनप्रतिनिधियों के प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,प्रधानमंत्री समेत ने एकमत से सभी राजनीतिक दलों से महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने ने सहयोग करने की वकालत की थी।गौरतलब है कि वर्तमान में संसद में 12 फीसद,विधानसभाओं में 9 फीसद और विधानपरिषदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 6 फीसद है।राजनीतिक हिस्सेदारी बढने से अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढने की संभावना दिखती है।लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि अगर भारत में महिलाओं को श्रमबल में बराबरी हो जाय,तो सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) में 27 फीसद का इजाफा हो सकता है।इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि विकसित देशों की श्रेणी में खडा करने का एक पक्ष महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढानी है।किसी भी समाज,समय व परिस्थिति में महिलाओं के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है।मानव सभ्यता के हरेक युग में महिलाओं ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की है।प्रेम,वात्सल्य व समर्पण से परिपूर्ण स्त्रियाँ,समाज को अपनी ऊर्जा से नया स्वरुप देने की क्षमता रखती हैं।हमारा समाज,प्रारंभ से ही पितृसत्तात्मक प्रकृति का रहा है।इस कारण,महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया जा सका और समाज में उन्हें हेय दृष्टि से भी देखा गया।रुढिवादी व स्वार्थी मानव ने उनके अधिकारों को भी सीमित कर दिया।बावजूद इसके,अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में महिलाओं ने कोताही नहीं बरती हैं।स्वस्थ,शिक्षित व बदलते वक्त के साथ सामंजस्य स्थापित कर आज वे पुरुषों के परंपरागत वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं।आज हर क्षेत्र में महिलाएं सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।महिलाओं के हिस्से दिनोंदिन नयी उपलब्धियां आ रही हैं।आश्चर्यजनक है कि इतनी उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी उनमें तनिक भी अहंकार नहीं है।आज भी वे पुरुषों से दूर नहीं,बल्कि उनके साथ-साथ चलकर ही मंजिल प्राप्ति की आकांक्षा रखती हैं।न जाने वे लोग किस मिट्टी से बने हैं,जो एक तरफ नारी सशक्तिकरण की लंबी-चौडी बातें करते हैं,तो दूसरी तरफ,मौका मिलते ही महिलाओं पर आपराधिक,घरेलू और सामाजिक हिंसा करने से बाज नहीं आते?आज देश के पिछडेपन का एक अहम कारण स्त्रियों का समाज में उचित स्थान न मिल पाना है।वह अगर सबल होगी तो आने वाली कई पीढियां सबल,शिक्षित व आत्मनिर्भर बन पाऐंगी।लैंगिग समानता आज भी वैश्विक समाज के लिए एक चुनौती बना हुआ है।घटता लिंगानुपात,न्यून साक्षरता दर,ग्रामीण महिलाओं में स्वास्थ का घटता स्तर,आदि ऐसे संकेतक हैं,जो हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति को दर्शाते हैं।आज भी अधिकांश भारतीय घरों में लडकियों के साथ लैंगिग आधार पर भेदभाव किया जाता है।हालांकि,संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस बाबत आशा व्यक्त जरुर की है कि अगले 80 वर्षों में इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा।लेकिन,इसकी शुरुआत हर घर से होनी चाहिए।यदि हर घर में बेटियों का पालन,बेटों की तरह हों और उन्हें आगे बढने के लिए एक खुला आसमान दिया जाता है,तो हमारी बेटियों द्वारा नित नये इतिहास रचे जाएंगे।घर-समाज में व्यसनों के आदी पुरुषों को प्यार से उसकी बुरी आदतों को बदलने तथा आपराधिक गतिगतिविधियों में सम्मिलित परिवार के सदस्यों को मुख्यधारा की ओर मोड़ने में स्त्री समुदाय बहुमुल्य योगदान कर सकती हैं।समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान करने में महिलाओं के योगदान को किसी भी तरह से कम नहीं आंका जा सकता।आज ‘महिला दिवस’ के अवसर पर हम उन्हें उनकी सुरक्षा,सहयोग और समर्थन का भरोसा दिलाकर,उनके समक्ष प्रस्तुत समस्याओं व चुनौतियों से निजात दिलाने में एक सहयोगी की भूमिका निभाने का संकल्प ले सकते हैं।पुरुषों की इसी भावना से इस दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।
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-सुधीर कुमार
sudhir2jnv@yahoo.com

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