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जल-संकट का समाधान जल-संरक्षण से ही!

आहत हृदय
आहत हृदय
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जल,पृथ्वी पर उपलब्ध एक बहुमुल्य संसाधन है।पृथ्वी का तीन चौथाई यानी करीबन 71 फीसदी हिस्सा जल से भरा है,लेकिन दुर्भाग्य से इसका अल्पांश ही पीने लायक है।जल संसाधन सभी सजीवों के जीवन का आधार है।जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना नहीं की जा सकती।अमेरिकी विज्ञान लेखक,लोरान आइजली ने कहा था कि ‘हमारी पृथ्वी पर अगर कोई जादू है,तो वह जल है।नगरीकरण और औद्योगीकरण की तीव्र रफ्तार,बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दस वर्षों में जल संकट की समस्या और अधिक विकराल हो जाएगी।इसी संस्था की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनियाभर में 75 फीसदी से ज्यादा लोग पानी की कमी की संकटों से जूझ रही है।वैश्विक तापमान में निरंतर होती वृद्धि और घटते भूजल स्तर से आने वाले दिनों में उत्पन्न स्थिति बेकाबू होने वाली है।भारत भी जल संकट की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है और बकायदा इसके आसार दिखाई भी देने लगे हैं।नदियां,ताल-तलैया,एवं जल के अन्य स्रोत स्वयं ही प्यासे होते जा रहे हैं।इधर,संयुक्त राष्ट्र ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है कि वर्ष 2025 तक भारत में जल-त्रासदी उत्पन्न होगी।एक तरफ,उच्च तापमान पर पूरा देश उबल रहा है,तो दूसरी तरफ गहराता जल संकट,प्राणियों के जीवन पर पूर्णविराम लगाने को उतावला नजर आ रहा है।ऐसे में,जल संरक्षण के आसान तरीकों को अपनाकर असमय दस्तक दे रहे,इस आपदा से जूझने की तैयारी कर उसके प्रभाव को कम से कम करने का प्रयास किया जाना ही मानवता के हित में है।
हाल ही 22 मार्च को मनाया गया ‘विश्व जल दिवस’ महज औपचारिकता नहीं था,बल्कि जल संरक्षण का संकल्प लेकर अन्य लोगों को इस संदर्भ में जागरुक करने का एक दिन भी था।संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में रियो डि जेनेरियो के अपने अधिवेशन में प्रतिवर्ष 22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ के रुप में मनाने का निश्चय किया था।जिसके बाद,सर्वप्रथम 1993 में पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के अवसर पर जल के संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य प्रारंभ किया गया।तब से,हर वर्ष यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक बड़े जोर शोर से मनाया जाता है।इस वर्ष भी इसका आयोजन कर जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के प्रयास किए गये।इस वर्ष 2016 के ‘विश्व जल दिवस’ के लिए चयनित थीम(विषय) था”जल और नौकरियाँ”।यह थीम जल के आर्थिक लाभ और रोजगार सृजन को ध्यान में रखकर रखा गया था।1.5 अरब लोग दुनियाभर में जल से संबंधित विभिन्न सेक्टरों में काम करते हैं,जो दुनिया के कुल श्रमबल का करीब आधा हिस्सा है।प्रतिवर्ष,जल दिवस मनाने का उद्देश्य जल के निर्ममतापूर्वक दोहन के प्रति लोगों को जागरुक करना है।विडंबना यह है कि जल संरक्षण के तमाम तरीके केवल कागजों पर ही सिमट जाते हैं।शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है।जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है,वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं,लेकिन जिसे अबाध व बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है,वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं।आज भी,शहरों में फर्श चमकाने,गाड़ी धोने और गैर-जरुरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है।पढ़े-लिखे लोगों से आशा की जाती है कि कम से कम वे इस संदर्भ में समाज में एक मानक स्थापित करें,लेकिन विडंबना यह है कि वे ही अपने दायित्वों से बेपरवाह नजर आते हैं।बढ़ती गर्मी के कारण देश के विभिन्न भागों से जलस्रोतों के सूखने की खबरें आ रही हैं।नदी,तालाब,कुंआ सहित चापानल के जलस्तर में बड़े अंतर का गिरावट देखा गया है।इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि एक दशक पहले चापानल हेतु केवल 50 से 60 फीट की खुदाई से पानी प्राप्त हो जाता था,लेकिन आज 150 से 200 फीट की खुदाई के बाद भी पानी का स्रोत बमुश्किल ही मिलता है।पेयजल के असमान वितरण के कारण कुछ जगहों पर लोगों को दूषित जल पीने की विवशता भी है।प्रदूषित जल में आर्सेनिक,लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है,जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है।वर्तमान में 1600 जलीय प्रजातियाँ जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं।जबकि,विश्व में 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।शुद्ध पेयजल के अभाव के कारण बोतलबंद पानी का व्यापार भी धड़ल्ले से चल रहा है।उपभोक्ताओं की आवश्यकता की आड़ में प्यूरीफाइड जल की जगह नकली बोतलबंद पानी भी खूब बेचे जा रहे हैं और बिक भी रहे हैं।जल-संकट की ओर इशारा करने वाली,ये खबरें देशवासियों को बेचैन करती हैं।ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता,दोनों के लिए चिंता का विषय है।इस दिशा में,अगर त्वरित एक्शन लेते हुए सार्थक पहल की जाए,तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है,अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण होंगे।दुर्भाग्य यह है कि पानी का महत्व हम तभी समझते हैं,जब लंबे समय तक पानी की सप्लाई नहीं होती या 20 से 25 रुपये देकर एक बोतल पानी लेने की जरुरत पड़ती है।उस समय,जल की एक-एक बूंद महत्वपूर्ण लगने लगती है,लेकिन फिर यह वैचारिकी तब धूमिल पड़ने लगती है,जब पुनः हमें बड़ी मात्रा में पानी मिलने लगता है।
उपलब्ध जल की मात्रा को प्रदूषण ने सर्वाधिक प्रभावित किया है।औद्योगिक कचरों का नदियों में अशोधित निस्तारण,मुहल्ले के अवशिष्ट का नालों के सहारे नदियों में मिलना तथा लोगों द्वारा नदियों तथा तालाबों में कपड़े की धुलाई आदि कृत्यों ने जलस्रोतों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है।देश की अधिकांश नदियां,प्रदूषण के मानक से ऊपर जा रही हैं।जिसके जिम्मेवार हम मनुष्य और हमारा स्वार्थयुक्त व्यवहार ही है।निश्चय ही,इन नदियों का प्रदूषित जल न केवल जलीय जीवों के लिए प्राणघातक सिद्ध होगा,बल्कि यह भूजल के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर हमें अस्पताल की राह भी दिखाने वाली है।नदियों का सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है।इसने तमाम नवजात सभ्यताओं का पालन-पोषण किया है।हर मानवीय आवश्यकताओं पर उसने यथासंभव मदद भी की है।यही कारण है कि हम भारतीय आज इसे मां के समान पूजनीय मान रहे हैं।दूसरी तरफ,संकटापन्न नदियों की सफाई की दिशा में सभी स्तरों पर दृष्टि का अभाव दिखता है।यदि हर व्यक्ति नदियों के भविष्य की चिंता करते हुए यथासंभव सहयोग करे,तो स्वच्छ नदियां फिर से हमारे पास हो सकती हैं।लेकिन ध्यान रहे,बात सिर्फ नदियों को साफ करने की नहीं,उसे गंदा न होने देने से भी है।
कई तरीकों से हम जल का संरक्षण कर सकते हैं।वर्षा जल संग्रहण के मामले में दक्षिण भारत के तमिलनाडु ने एक मानक स्थापित किया है।तमिलनाडु के हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य बना दिया गया है।इसका अनुकरण पूरी भारत में होना चाहिए।व्यर्थ हो रहे वर्षा जल का संग्रहण कर उसका प्रयोग कई तरह के कार्यों में किया जा सकता है।यह,भू-जल स्तर को रिचार्ज करने का एक अच्छा विकल्प भी है।इससे इतर,छोटे-छोटे प्रयासों से जल की बूंदों को सहेज सकते हैं।यह बताने की जरुरत नहीं,बस अमल में लाने की जरुरत है।साथ ही,अपने घर के आसपास बड़ा गड्ढा बना देने से उसमें जल जमा होने के बाद भूमिगत जल की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।वृक्षारोपण पर भी जोर लेना भी हितकारी है।वृक्षारोपण कई मर्ज की दवा है।पर्यावरण संबंधी अधिकांश समस्याओं की जड़ वनोन्मूलन है।ग्लोबल वार्मिंग,बाढ़,सूखा जैसी समस्याएं वनों के ह्रास के कारण ही उत्पन्न हुई है।मजे की बात यह है कि इसका समाधान भी वृक्षारोपण ही है।पौधे बड़े पैमाने पर लगाए जाने चाहिए।हालांकि बोलना आसान है,जबकि पौधे लगाकर उसकी रक्षा करना कठिन।फिर भी,हरेक परिवार से छोटी-सी शुरुआत की जाती है,तो बहुत हद तक जल की बर्बादी को रोका जा सकता है।मनुष्य प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है,जिसके पास बुद्धि,विवेक और सब कुछ करने की क्षमता है,लेकिन हमारा मूर्खतापूर्ण प्राकृतिक जैवमंडल में अकारण हस्तक्षेप मानव के लिए काल के गाल में समाने के लिए खींची गयी लक्ष्मण रेखा पार करने के बराबर है।मनुष्य खुद सृष्टि समाप्ति के लिए निमंत्रण दे रहा है।हम सबको पता है कि ‘जल है तो कल है’,बावजूद इसके जल की बूंदों को बेवजह बर्बाद करना बदस्तुर जारी है।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है।
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सुधीर कुमार

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