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उत्तर तथा मध्य भारत समेत कमोबेश पूरा देश भीषण गर्मी की चपेट में हैं।झुलसा देने वाली गर्मी ने सदियों के रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं।राजस्थान के फलौदी में गत बृहस्पतिवार को पारा पिछले 102 वर्ष के उच्चतम स्तर 51 डिग्री पर दर्ज किया गया।रेगिस्तानी भूभाग होने के कारण प्रदेश के अन्य जिलों जैसलमेर,बाड़मेर,चुरु,जोधपुर और माउंटआबू में तापमान अर्धशतक पूरा करने के करीब है।देश के अन्य शहरों में भी सूरज देव के सितम के आगे लोग बेदम नजर आ रहे हैं।सूरज की यह तपिश जानलेवा साबित हो रही है।केवल राजस्थान में ही पिछले तीन दिनों में 22 लोगों की मौत हो चुकी है,जबकि देश के अन्य प्रदेशों के सैकड़ों नागरिकों ने भीषण गर्मी से उत्पन्न बौखलाहट के कारण अपना जीवन त्याग चुके हैं।लगातार चलती गर्म हवाओं(लू) ने लोगों को अपने घरों में दुबकने को मजबूर कर दिया है।सूरज की तेज किरणें,सूखे और पेयजल संकट की मार झेल रहे,भारतीयों पर दोहरी मुसीबत साबित हो रही है।तापमान के 40 से 50 डिग्री पर पहुंचने से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।मौसम विभाग ने उत्तर प्रदेश सहित देश के दर्जनभर राज्यों में लू को लेकर अलर्ट जारी कर दिया है।दूसरी तरफ,बिजली की आंखमिचौली के कारण लोगों की नींद और चैन हराम हो गयी है।सूरज की तपिश और उमस के आगे लोग बिलबिला रहे हैं।बिजली हमारे दैनिक जीवन को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता है,इसलिए,अनियमित बिजली आपूर्ति के कारण समाज के सभी वर्ग के लोगों पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है।एक तरफ,कामकाजी लोगों की श्रम-उत्पादकता प्रभावित हो रही है,तो दूसरी तरफ बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है।सूरज की यह तपिश जैसे-जैसे बढ़ेगी,जल संकट और भी गहराता जाएगा।दिहाड़ी मजदूरों,किसानों और अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए दिन में काम पर निकलना मुश्किल होता जा रहा है।वहीं,गर्म हवाओं के चलने से खेत-खलिहान व घरों में आगजनी की घटनाएं आम हो चुकी हैं।कुछ प्रदेशों में सैकड़ों घर जलकर स्वाहा हो चुके हैं,जबकि उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही है।दूसरी तरफ,देश के तेरह राज्यों की करीब 33 करोड़ आबादी सूखे की मार झेल रही है।अकेले उत्तर प्रदेश की लगभग 10 करोड़ आबादी सूखे की समस्या का सामना कर रही है।राज्य के 75 में से 50 जिला सूखा से बुरी तरह प्रभावित हैं।इसी तरह मध्य प्रदेश के सभी कुल 51 जिलों में से 46,महाराष्ट्र के 36 में से 22,झारखंड के 24 में से 22 तथा कर्नाटक के 30 में से 27 जिले सूखे से क्षत-विक्षत हैं।सूखा व पेयजल संकट के कारण देश के अन्य जिलों की स्थिति भी बद से बदतर होती जा रही है।जल संकट के कारण देश के कुछ प्रदेशों में स्थिति नारकीय हो चुकी है।ऐसा लगता है,मानो पृथ्वी,हमारी सहनशीलता की परीक्षा ले रही है।आखिर,इस आपदा के लिए कहीं-न-कहीं मानव का प्रकृति से अनियंत्रित छेड़छाड़ ही जिम्मेदार है।देखना दिलचस्प होगा कि मानव जाति प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन से उत्पन्न विनाश के मंजर को कब तक झेल पाता है?
सुधीर कुमार
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